Tuesday, September 05, 2006

विदेश में गणेशजी और मेरा मन मयूर
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प्रथमं वक्रतुंण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम ,
तृतीयं कृष्णपिङगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम
लम्बोदर पन्चमं च षष्ठं विकटमेव च
सप्तमं विघ्ह्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकं
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननं,
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:
न च विघ्नभयं तस्य सर्व सिधिकरं परम ॥


भाद्रपद में गणेश जी का त्यौहार भारत के पश्चिम के हिस्से में खूब उल्लास से मनाया जाता है । मेरा लालन- पालन बंगाल मै हुआ और मेरी शिक्षा भी बंगाल में हुई है । गणेश उत्सव हमारे बंगाल में इतना नहीं है जितना देवी की आराधना पर जोर दिया जाता है । बंगाल में आज भी लड़की को उँचा स्थान दिया जाता है शायद इसलिये देवी के साथ ही देवता को बंगाल में पूजते हैं ।

महाराष्ट्र में अकेले ही गणेश जी की शोभा यात्रा बहुत धूम धाम में निकालते है, मैने कभी इस आंनद को महसूस नही किया था ।जब विवाह के बाद मैने पहली बार गणेश जी का त्यौहार अमेरिका मै देखा तो मन प्रसन्न हो गया । मेरे पड़ॊस में ही एक परिवार की भाभीजी ने गणेश जी की मूर्ति की स्थापना की और उन्होने नियम से दोनो समय मंगल आरती गायी । उनके यहाँ सभी लोग आमन्त्रित थे । ऐसा नही कि केवल उनके अपने ही शामिल हुए हों आस-पास में जो लोग भारत से जुडें हुए हैं और इन परंपराओं की कमी मह्सूस करते है वे तो उस आरती व उत्सव में रम ही गये !

उन्हें ऐसा लग रहा था कि वे लोग विदेश में नहीं भारत में आ गये हैं । सभी लोगों का जोर से "गणपति बप्पा मोरया" का जय घोष करना । यह सब एक दिन नहीं पूरे १० दिन तक चला ।

दसवें दिन भाभी जी ने गणेश जी के विसर्जन से पहले जितने भी लोग आरती मे शामिल थे उनके लिये भोजन का प्रबंध किया हुआ था । भाभी जी को मेरा घर नहीं मालूम था, उन्हे यह पता था कि मैं आस पास कहीं रहती हूँ क्योंकि मैं भी आरती मे नियम से ्पूरे १० दिन गयी थी । उन्होनें किसी तरह से पता किया मेरा घर और न्योता किया कि उनके यहाँ खाना है ।
हम सभी उनके घर भोजन के लिय गये । गणपति जी को विदा करने से पहले सब ने मगंलमय की प्रार्थना की और साथ में अगले बरस आने की कामना की । उसके उपरान्त भाभी जी ने गुलाल से सभी को टीका किया और रगं उडाया । यह उत्सव मेरे लिय काफ़ी पावन था क्योंकि मैने कभी गणेश उत्सव इस रूप मे नही देखा था ।

मेरा मानना है कि आप चाहे कही भी रहे अपना देश हो या विदेश अपनी जो मूल्यवान सभ्यता और संस्कृति है वह न भूलें और उसे पूरे आन्नद व उल्लास के साथ मनायें जिस प्रकार हमारी पडोस में रहने वाली भाभी जी बनाया और उसे बोझ नहीं समझा ।

2 comments:

Reetesh Gupta said...

बहुत अच्छा लेख है । अनुभव और भावनाओं का काफ़ी अच्छा मिश्रण है । कौन कहता है की हम लिख नहीं सकते । बस इस सिलसिले को यू ही आगे बढाना है ।

रीतेश

hemanshow said...

अच्छा लिखा है। त्योहारों पर स्यमं के अनुभवों को लिखना एक अच्छी पहल है। जारी रखें और भारत के विभिन्न स्थानॊं की विशेषताओं को अपने शब्दों में बुनकर अवगत कराते रहें।